Eminent Writer
Josh Kharosh
Genre -
आमुख
मूलतः स्वयं पर अजमाया गया शब्द-जाल का कमाल कह सकते हैं इसे। स्वयं की रचना को पुनः पुनः पढ़कर गुनगुनाकर और ऊँच्चे स्वर में गा-गाकर प्रेरित होता हूँ, अन्तर की बुझती आग को सुलगाता हूँ, दहकाता हूँ और स्वयं को उसकी ज्वाला में देखता हूँ, गरम करता हूँ और ऊर्जावान बन पुनः जीवन पथ पर जोश- खरोश के साथ चल पड़ता हूँ। उदासी, निराशा और हताशा को चारो चित्त लेटाकर आगे बढ़ता हूँ पीछे मुढ़कर देखता भी नहीं,जरुरत भी नहीं पड़ती।
बचपन में जब अंधेरी रात में घर से निकलता तो कोई अज्ञात कारणों से डरता था। उस डर से निपटने का एकमात्र उपाय होता था जोर-जोर से गाना गाना। मैं या तो हनुमान चालीसा का पाठ करता या यह नारा देता था “जो मुझसे टकरायेगा वह चूर-चूर हो जायेगा।'” ऐसा करते-करते अंधेरी रात की साया को चिरता हुआ गंतव्य तक पहुँच जाता था। स्वयं पर इतना भरोसा होने लगा कि मैं बचपन से श्मशान के आस-पास बैठकर पढ़ने से भी नहीं डरता था।
आज तो “पेप टॉक” और “'मोटिवेशनल स्पीच'”' से सोशल मिडिया भरा-पड़ा है। यह समय की माँग है। कुछ इसी तर्ज पर मेरा “जोश-खरोश'” कविता संग्रह भी आप सब सुधि पाठकगण के सम्मुख पेश है। आशा है कविता संग्रह की हरेक लड़ी में आपको वह रस मिले जिसकी आप उम्मीद लगाये बैठे हैं। विद्यार्थीगण के लिए 'गागर में सागर' सादृश 'जोश-खरोश' साबित होगा। सच कहूँ आज भी मैं स्वयं को विद्यार्थी ही मानता हू!
अन्ततः आप अपना सुझाव देने में कृपणता नहीं करेंगे। इसी उम्मीद के साथ बिदा लेता हूँ।
गंगेश्वर सिंह
Email- singhgangeswar2017@gmail.com