Eminent Writer
Rishte Nate
Genre - Collection of Poems
आमुख
सुनते आ रहा हूँ कि हरेक रिश्तें का मूलाधार प्यार पर टिका है। समय के साथ सबकुछ बदलता है। आज रिश्तों में भी वह निःशर्त और निःस्वार्थ प्यार लापता सा हो गया है। आज तो यहाँ भी करार, टकरार और अस्वीकार रिश्तें के पीयूष रुपी प्यार के बीच बाधा बन खटकने लगे हैं। मानो आज सब बोझ सा बन गया है बस हमसब इसे मजबूरन ढोये जा रहे हैं। मैं मानता हूँ यह स्थिति बदलनी चाहिए । एक बार इस संकट पर विचार करना होगा। मुझे ऐसा लगा रिश्तें-नातें पप कुछ लिखूँ और बस लिखना शुरु किया। यह मेरी इस श्रृंखला की पहली पुस्तक हैं । अभी तो काफी रिश्तें हैं जिस पर लिखना जरुरी है। मैं बचपन से पचपन तक रिश्तों को जिस रुप में देखा हूँ, महसूस किया हूँ, भोगा हूँ और इन्हें जिया हूँ बस उन्हीं अनुभवों, भावों और संवेगों को शब्द की लड़ियों में पीरो कर परोस रहा हूँ। पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए स्वतंत्र हैं । मेरी उनसे ऐसी अपेक्षा रहेगी । अन्ततः --
आज फिर से तुममें वही रसधार, प्यार
और दोनों के आधार की खोज है।
सोचता हूँ आज भी कल की तरह ये थोक के भाव मिलते।
ढूँढ़ता तो हँपर न जाने ये कहाँ लापता हो गये ?
ग्रीष्मकाल में जैसे पहाड़ी नदी सूख जाती है।
पर जल सतह के नीचे तो दबा रहता है।
चलो, रेत के ढ़ेर को हटाएँ जो दुश्वारियाँ बनी है।
अब थोक के भाव प्यार भी मिले तो
कैसे सँभाल पाऊँगा ?
उब न हो जाए-डरता हूँ।
विन्दू भी मिलजाए तो उसे सिंधु मान
रसपान करुँगा।
मैं विन्दू से तर-बतर हो जाऊँगा।
तृप्ति अतृप्ति की बात फिर कौन करे।
गंगेश्वर सिंह
Email- singhgangeswar2017@gmail.com